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Stock Market Terminology in Hindi | आप स्टॉक मार्किट में नए हो तो ये 63 शब्दावली जानना जरुरी है।

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Stock Market Terminolog in Hindi

अगर आप स्टॉक मार्किट में नए है तो आपको स्टॉक मार्किट में उपयोग होने वाले इन शब्दों (Stock Market Terminology)को जानना बेहद जरुरी है। जिससे आपको स्टॉक मार्किट सिखने में लिए आसानी हो।

Market Outlook – बाजार दृष्टिकोण

  • Market Outlook Meaning – रेटिग के साथ जुड़ा हुआ यह शब्द भी भावी संभावनाओं को दर्शाता है। कंपनी / संस्था या देश का भविष्य क्या है अथवा इसकी क्या संभावना है जैसे सवाल पूछते समय आउटलुक(Market Outlook) शब्द का उपयोग किया जाता है।

आउटलुक के आधार पर ही निवेश करने का निर्णय को लिया जाता है क्योंकि आउटलुक पॉजिटिव, निगेटिव या फिर स्टेबल (स्थिर) हो सकता है।निवेशकों के लिए यह हितकारक है कि वे निवेश करते समय कंपनी, संस्था या देश के आउटलुक(Outlook) पर ध्यान दें।

Order Book – ऑर्डर बुक

  • Order Book Meaning – कंपनी की ऑर्डर बुक में कितने ऑर्डर बकाया पड़े हैं इसकी जानकारी के आधार पर कंपनी के कार्य परिणाम, भविष्य एवं स्थिरता का अनुमान लगाया जा सकता है।

कंपनी के पास ऑर्डर ही न हों या भरपूर ऑर्डर न हों तो ऐसी स्थिति कंपनी के लिए अच्छी नहीं माना जाती, जबकि निरंतर ऑर्डर मिलने वाली तथा ऑर्डर बुक में भरपूर ऑर्डर रखने वाली कंपनी की स्थिति सुदृढ़ मानी जाती है।

ऑर्डर बुक भरपूर होने का अर्थ यह है कि कंपनी के पास भरपूर काम है तथा भविष्य में उसकी आय निरंतर बनी रहेगी।

Arbitrageआर्बिट्रेज

  • Arbitrage Meaning – एक शेयर बाज़ार से निर्धारित शेयरों की कम भाव पर खरीदारी करके उसे दूसरे बाज़ार में ऊंचे भाव पर बेच देने की प्रवृत्ति को आर्बिट्रेज(Arbitrage) कहा जाता है।

ये सौदे एक ही समय किये जाते हैं तथा इसमें बड़ी संख्या में सौदे किये जाते हैं। पुराने समय में एक ही समय पर एक ही स्क्रिप(Scrip) के अलग-अलग भाव हुआ करते थे परंतु अब ऑन लाइन ट्रेडिंग सुविधा होने से इसकी मात्रा काफी घट गयी है।

  • Example – बीएसई(BSE) पर XYZ कंपनी के शेयर ₹145.20 के भाव पर खरीद कर उसी समय एनएसई(NSE) पर ₹145.30 पर बेच देने की प्रक्रिया को आर्बिट्रेज कहते हैं। इस प्रकार आपको 10 पैसे का अंतर मिलता है। अब इस प्रकार के सौदों में भाव का अंतर काफी कम होता है, परंतु भारी मात्रा में सौदे होने से इनमें भरपूर लाभ अर्जित होता है। इस प्रकार का कारोबार करने वालों को आर्बिट्रेजर(Arbitrage) कहा जाता है।

कई बार एक ही कमोडिटी, करेंसी या सिक्युरिटीज के तीन चार एक्सचेंज पर अलग-अलग भाव अंतर पर सौदे होते हैं, जिसमें एक बाज़ार से नीचे भाव में खरीद कर दूसरे बाज़ार में ऊंचे भाव पर बेचा जाता है।

यहाँ महत्त्वपूर्ण यह है कि ये सौदे दोनों एक्सचेंजों पर एक ही समय पर किये जाते हैं। ब्रोकर इस काम के लिए विशेष स्टॉफ रखते हैं, जो BSE और NSE दोनों पर भरपूर मात्रा में सौदे करते रहते हैं।

Arbitration – मध्यस्थता करना

  • Arbitration Meaning – आर्बिट्रेशन का अर्थ है विवादों को निपटाना। जब ब्रोकर और ब्रोकर के बीच या ब्रोकर और ग्राहक के बीच कोई विवाद हो जाता है तो इस प्रकार के विवाद को निपटाने के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति की जाती है, जिसे आर्बिट्रेटर कहा जाता है और उसके निपटान की प्रक्रिया को आर्बिट्रेशन प्रोसेस(Arbitration) कहा जाता है।

शेयर बाज़ार में ऐसे विवादों के निपटान के लिए एक खास विभाग एक्सचेंज के नियमों एवं उपनियमों के तहत कार्य करता है।

इस प्रकार के मामलों में आर्बिट्रेटर की नियुक्ति एक्सचेंज के नियमों के अनुसार होती है और उसके द्वारा दिये गये निर्णय ब्रोकर और ग्राहकों पर लागू होते हैं। इस प्रक्रिया में आर्बिट्रेटर दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना निर्णय देता है।

Auction – नीलामी

  • Auction Meaning –  शेयर बाजार में जब कोई निवेशक शेयर बेच देता है, परंतु समय पर उसकी डिलिवरी देने में विफल हो जाता है तो एक्सचेंज की कार्य पद्धति के तहत निवेशक के शेयर डिलिवरी दायित्व को उतारने के लिए उतने ही शेयरों का आवश्यक रूप से नीलाम (Auction) किया जाता है।

इस प्रक्रिया में ऑक्शन के जरिए उतनी संख्या के शेयर बाजार के वर्तमान भाव पर ब्रोकर के द्वारा खरीदे जाते हैं और इसके भाव अंतर का बोझा निवेशक से वसूला जाता है। इसका कारण यह है कि निवेशक ने अपने पास शेयर हुए बिना भी उनको बेच दिया था।

शार्ट सेल्स(Short Sell) करने वाले निवेशक को बाजार भाव पर शेयर खरीद कर डिलिवरी देनी होती है, परंतु जब कोई निवेशक स्वेच्छा से ऐसा नहीं करता है तो बाजार के नियमों के तहत स्टॉक एक्सचेंज द्वारा आवश्यक रूप से नीलामी के मार्फत उस सौदे का निपटान किया जाता है।

Allotment – आवंटन

  • Allotment Meaning – कंपनियों के सार्वजनिक निर्गम (IPO) के दौरान निवेशकों द्वारा किये गये आवेदन पर मिले हुए शेयरों को शेयर आवंटन (Allotment) कहा जाता है।

STT( Security Transaction Tax ) – सुरक्षा लेनदेन कर

  • STT Meaning – सरकार के कर नियम के अनुसार शेयर सिक्युरिटीज के प्रत्येक सौदे पर एसटीटी लागू होता है। सरकार को इस मार्ग से प्रतिदिन भारी राजस्व मिलता है। यह कर ब्रोकरों को भरना होता है हालांकि ब्रोकर इसे अपने ग्राहकों से वसूल लेते हैं। प्रत्येक कांट्रेक्ट नोट या बिल में ब्रोकरेज के साथ-साथ एसटीटी(STT) भी वसूला जाता है।

FII(Foreign Institutional Investor) – विदेशी संस्थागत निवेशक

  • FII Meaning – FII, यानी की फॉरेन इंस्टिट्युशनल इन्वेस्टर अर्थात विदेशी संस्थागत निवेशक। ये संस्थागत निवेशक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होते हैं। ये अपने स्वयं के देश के लोगों से बड़ी मात्रा में निवेश के लिए धन एकत्रित करते हैं और उनका अनेक देशों के शेयर बाज़ार में निवेश करते हैं।

इन संस्थागत निवेशकों के ग्राहकों की सूची में सामान्य निवेश से लेकर बड़े निवेशक-पेंशन फंड आदि होते हैं, जिसका एकत्रित धन FII अपनी व्यूहरचना के अनुसार विविध शेयर बाजारों की प्रतिभूतियों में निवेश करके उस पर लाभ कमाते हैं और उसका हिस्सा अपने ग्राहकों को पहुँचाते हैं।

चूंकि इन लोगों के पास धन काफी विशाल मात्रा में होता है और ये भारी मात्रा में ही लेवाली या बिकवाली करते हैं जिससे शेयर बाज़ार की चाल पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

भारत में तो अभी उनका ऐसा वर्चस्व है कि लगता है शेयर बाज़ार को वे ही चलाते हैं।

वर्ष 2008 में जब अमेरिका में आर्थिक मंदी आयी थी तब इस वर्ग ने भारतीय पूंजी बाज़ार से अपना निवेश निरंतर निकाला था, जिससे भारतीय बाज़ार में भी गिरावट होती गयी।

किसी भी एफआईआई(FII) को भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश करने से पहले अपना पंजीकरण भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) तथा भारतीय रिजर्व बैंक(RBI) के पास करवाना होता है तथा इनके नियमों का पालन करना होता है।वर्तमान समय में सेबी के पास 1100 से अधिक FII पंजीकृत है।

Exposure – जोखिम

  • Exposure Meaning – जब कोई निवेशक किसी कंपनी में निवेश करता है तो यह कहा जाता है कि उक्त निवेशक ने कंपनी में एक्सपोजर लिया है। व्यक्ति जब भी कोई निवेश करता है तब उसके मूल्य में घट-बढ़ की संभावना होने से उस निवेश का एक्सपोजर(Exposure) कहा जाता है। साधारण शब्दों में इसे जोखिम कहा जा सकता है।

एक्सपोजर मात्र कंपनी में ही नहीं बल्कि संपूर्ण उद्योग या अर्थतंत्र में भी लिया जाता है।

जब कोई निवेशक अन्य देश में निवेश करता है तो कहा जाता है कि उसने उस देश के अर्थ तंत्र में या उस देश की कंपनियों, उद्योगों में एक्सपोजर अर्थात जोखिम ली है।

वायदे के सौदों में यह शब्द काफी उपयोग में लाया जाता है क्योंकि जब कोई ट्रेडर प्युचर कांट्रेक्ट करता है तब वह भविष्य की जोखिम लेता है।

Best Buy – बेस्ट बाई

  • Best Buy Meaning – जो शेयर खरीदने के लिए उत्तम माने जाते हैं या जिन शेयरों का खरीदारी के लिए उत्तम भाव माना जाता है उन्हें बेस्ट बाई(Best Buy) कहा जाता है।

ये कंपनियाँ श्रेष्ठ हैं अथवा भविष्य में उनका भाव अपने वर्तमान भाव से बढ़ने की संभावना होती है ऐसी स्क्रिप या शेयर को बेस्ट बाई के रूप में गिना जाता है।

अनेक बार एनालिस्ट विद्यमान स्थित के आधार पर किसी शेयर को बेस्ट बाई कहते हैं, उस समय उन कंपनियों का शेयर भाव बढ़ने की प्रबल संभावनाएँ रहती हैं।

Blue Chipब्लू चिप

  • Blue Chip Meaning – किसी कंपनी का ब्लू चिप(Blue Chip) होने का अभिप्राय यह है कि उसके शेयर निवेशकों के लिए पसंदीदा शेयर हैं। शेयर बाज़ार की श्रेष्ठ-मजबूत कंपनियों के लिए यह शब्द उपयोग में लाया जाता है।

इस प्रकार की कंपनियों में सौदे भी काफी होते हैं, उतार-चढ़ाव भी काफी होता है और उनमें निवेशकों का आकर्षण भी खूब बना रहता है।

BOLT – बोल्ट (बीएसई (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज)) ऑनलाइन ट्रेडिंग

  • Bolt Meaning – बोल्ट अर्थात प्रतिभूतियों की ऑनलाइन स्क्रीन आधारित ट्रेडिंग सुविधा उपलब्ध कराने वाला टर्मिनल। बीएसई(BSE) के सदस्यों को एक्सचेंज की तरफ से इस टर्मिनल की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है

Bubble – बबल

  • Bubble Meaning – विशेषकर बाज़ार में जब कोई भी प्रकरण खुलता है तो उसे बबल बर्स्ट(Bubble Burst) हुआ है ऐसा कहा जाता है। बबल अर्थात बुलबुला और बर्स्ट अर्थात फटना। जब किसी शेयर का भाव बुलबुले की तरह फूलता रहे और एक सीमा पर आने के बाद धड़ाम से गिर जाये तो इसे बुलबुला फूटना कहा जाता है।

Correction – करेक्शन

  • Correction Meaning – बाज़ार खूब बढ़ गया हो और एक निश्चित ऊंचाई पर पहुँचने के बाद तेजी के रूझाान के बीच जो गिरावट दर्ज की जाती है उसे बाज़ार में करेक्शन कहा जाता है।
  • Example – शेयर बाज़ार यदि निरंतर 4 दिन एकतरफा बढ़ता रहे और पांचवे दिन उसमें गिरावट आ जाये तो उसे करेक्शन के नाम से जाना जाता है।

समय-समय पर इस प्रकार का करेक्शन बाज़ार के स्वास्थ्य के लिए अच्छा प्रतीक माना जाता है। निरंतर एकतरफा बढ़ते रहने वाला बाज़ार जोखिमपूर्ण हो जाता है जिसमें आगे जाकर एक साथ भारी गिरावट की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।

Corporate Actionकॉर्पोरेट कार्रवाई

  • Corporate Action Meaning – कंपनी द्वारा जब कभी भी शेयरधारकों या बाज़ार से सम्बंधित कोई निर्णय लिया जाता है तो उसे कार्पोरेट एक्शन कहा जाता है।
  • Example – लाभांश / ब्याज का भुगतान, राइट / बोनस इश्यू, मर्जर / डिमर्जर, बाई बैक, ओपन ऑफर जैसी बातों कार्पोरेट एक्शन कही जाती हैं।

Contract Note – कॉन्ट्रैक्ट नोट

  • Contract Note Meaning – शेयर बाज़ार में सौदे करते समय कांट्रेक्ट नोट का काफी महत्त्व है। आप जिस शेयर ब्रोकर के जरिये शेयरों की खरीद बिक्री करें, उससे हर बार कांट्रेक्ट नोट लेने का आग्रह करें। आपके शेयरों के सौदे किस समय तथा किस भाव पर हुए, उस पर कितनी दलाली, सिक्युरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स, सर्विस टैक्स लगा है इन सबका उल्लेख कांट्रेक्ट नोट में होता है।

आपको ब्रोकर से सौदे के 24 घंटे के भीतर कांट्रेक्ट नोट मिल जाना चाहिए, परंतु सामान्य रूप से ब्रोकर इसमें 3-4 दिन लगा देते हैं।

कांट्रेक्ट नोट पाना आपका अधिकार बनता है और यही आपके सौदे का दस्तावेजी प्रमाणित प्रमाण भी है।

यदि किसी कारण से आपका ब्रोकर विफल हो जाये और आपको अपने सौदे के शेयर या उसकी रकम उससे लेनी निकलती है तो इस कांट्रेक्ट नोट के आधार पर ही आप अपना दावा पेश कर सकते हैं।

ब्रोकर के विफल होने पर एक्सचेंज कांट्रेक्ट नोट के आधार पर ही आपका दावा मान्य करता है, जिसमें आपको एक्सचेंज की तरफ से 10 लाख रूपये तक की सुरक्षा मिलती है।

ऐसी स्थिति में कांट्रेक्ट नोट ही मात्र ऐसा दस्तावेज है जो आपके दावे का आधार बनता है। ऐसा न होने पर आपका दावा वैध नहीं माना जायेगा।

अतः ब्रोकरों के साथ व्यवहार करते समय कांट्रेक्ट नोट लेने का आग्रह करें, इसकी उपेक्षा न करें तथा इसे संभाल अपने पास रखें। याद रखें इस कांट्रेक्ट नोट पर ब्रोकर का सेबी पंजीकरण क्रमांक होना भी आवश्यक है।

Cornering – कॉर्नरिंग

  • Cornering Meaning – जब कोई निश्चित व्यक्ति या ग्रुप किसी शेयर विशेष की खरीदारी करके उस पर एकाधिकार जमाने के लिए इकùा करता है तो इसे उस शेयर की कॉर्नरिंग हो रही है, ऐसा कहा जाता है।

ऐसा करने के अनेक कारण हो सकते हैं परंतु यह बात निश्चित है कि ऐसा करने के पीछे उक्त समूह या व्यक्ति की उस शेयर में रूचि है।

Consent Orderकंसेंट ऑर्डर

  • Consent Order Meaning – बाज़ार का कोई भी मध्यस्थती-खिलाड़ी नीति नियमों का उल्लंघन करता है तब उसके विरूद्ध कार्यवाही की जाती है।उल्लंघन करने वाली हस्ती अपना अपराध स्वीकार न करे तो वह अपना विवाद सेट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक ले जा सकता है। ऐसा करने पर उसे काफी खर्च करना पड़ सकता है तथा समय भी काफी बर्बाद हो सकता है। यदि कोई हस्ती इन लंबी कानूनी प्रक्रियाओं से बचना चाहे तो वह अपनी भूल स्वीकार कर लेता है और सेबी उस पर निर्धारित आर्थिक दंड लगाकर एक कंसेंट ऑर्डर(Consent Order) जारी कर देती है।

ऐसा करने से समय और खर्च बच जाता है, जबकि अपराधी को आर्थिक सजा भी मिल जाती है। हालांकि विशेष प्रकार के अपराधों में ही कंसेंट ऑर्डर की सुविधा मिलती है।

गंभीर प्रकार के अपराध करके कंसेंट ऑर्डर के जरिए मुक्ति नहीं पायी जा सकती। न्यायालयों में विवादों के ढेर लगे हुए हैं तथा मामलों के निर्णय आने में वर्षों लग जाते हैं ऐसी स्थिति में कंसेंट ऑर्डर के जरिए मामलों को निपटाना एक व्यवहारिक मार्ग है।

विदेशों में यह प्रथा प्रचलित है। SEBI द्वारा यह प्रथा शुरू करने के बाद अनेक मामलों के निर्णय जल्दी हो पाये हैं और आर्थिक दंड के रूप में इस प्रक्रिया के जरिए काफी धन जमा हुआ है। इस राशि का उपयोग इन्वेस्टर प्रोटेक्शन या एज्यूकेशन पर किया जा सकता है।

Delisting – डिलिस्टिंग

  • Delisting Meaning – IPO (पब्लिक इश्यू) के बाद जिस प्रकार शेयरों की शेयर बाजार में लिस्टिंग होती है उसी प्रकार अनेक बार कंपनियां अपने शेयरों की शेयर बाजार से डिलिस्टिंग करवाती हैं। शेयर डिलिस्टि हो जाने के बाद उनके सौदे शेयर बाजार पर नहीं हो सकते। इस प्रकार डिलिस्टिंग(Delisting) शेयरधारकों एवं निवेशकों के हित में नहीं है।

डिलिस्टिंग अलग-अलग कारणों से होती है। कोई कंपनी डिलिस्टिंग करार का पालन नहीं करती है और डिलिस्टिंग की फीस नहीं भरती है तब एक्सचेंज पहले उसके शेयरों को सस्पेंड कर देता है उसके बाद भी यदि कंपनी निर्धारित समय के अंदर डिलिस्टिंग करार में वणि≤ शर्तों का पालन नहीं करती है तो अंत में एक्सचेंज उसके शेयरों को डिलिस्टि करने की नोटिस दे देते हैं।

ऐसा होने पर भी यदि कंपनी कोई उत्तर न दे तो एक्सचेंज उसके शेयरों को अपनी सूची से हटा देती है। इस प्रकार की डिलिस्टिंग एक सजा के रूप में या कार्रवाई के रूप में होती है, जिसका भोग उसके शेयरधारकों को भोगना पड़ता है, जिससे वे अपने शेयरों के सौदे बाजार में नहीं कर सकते और शेयरों की प्रवाहिता शून्य हो जाती है।

जबकि अनेक बार कंपनियां अपनी स्वैच्छा से डिलिस्टिंग कराती हैं। ऐसा करते समय कंपनियों को SEBI के डिलिस्टिंग दिशा-निर्देशों का पालन करना होता है, जिसके तहत कंपनी को शेयरधारकों के पास से स्वयं ही शेयर खरीदने पड़ते हैं

इस प्रकार स्वैच्छिक डिलिस्टिंग के मामले में उसके शेयरधारकों को नुकसान सहन नहीं करना पड़ता है।

Disinvestment – डिसइनवेस्टमेंट

  •  Disinvestment Meaning – इन्वेस्टमेंट का अर्थ है निवेश करना जबकि डिसइन्वेस्टमेंट का मतलब है निवेश खाली करना।

सरकारी अर्थात सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की स्थापना सरकार ने की होती है, जिससे उस कंपनी का संपूर्ण मालिकाना हक सरकार के पास ही रहता है। बदलते समय और उदारीकरण के वातावरण में निजीकरण का दायरा बढ़ता जा रहा है। सरकार इन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से अपना हिस्सा (निवेश) खाली करती है तो इसे डिसइन्वेस्टमेंट(Disinvestment) कहा जाता है।

यह खाली किये जाने वाला हिस्सा सरकार सार्वजनिक जनता, निजी निवेशकों, बैंकों, संस्थाओं आदि को प्रस्तावित करती है।

इस प्रकार धन एकत्रित करके सरकार उस रकम का उपयोग सामाजिक विकास के कार्यों में करती है। साथ ही सामान्य निवेशकों को सार्वजनिक क्षेत्र की इन कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी लेने का अवसर मिलता है।

डिसइन्वेस्टमेंट के बाद शेयरों की स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टिंग होती है और उसमें सौदे भी होते हैं।

सरकार पिछले कई वर्षों से धीमी गति से डिसइन्वेस्टमेंट कर रही है। जिसके कारण ही अनेक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के शेयर सूचीबद्ध हैं, जिनमें ओएनजीसी(ONGC), एनटीपीसी(NTPC), भेल(BHEL) इत्यादि कंपनियों का समावेश है।

हाल ही में सरकार की तरफ से डिसइन्वेस्टमेंट का पहला चरण शुरू हुआ है जिसे ध्यान में रखते हुए बांबे स्टॉक एक्सचेंज ने एक अलग वेबसाइट(Website) भी तैयार की है जिस पर पीएसयू के डिसइन्वेस्टमेंट से संबंधित आवश्यक जानकारियां उपलब्ध करायी गयी है।

दीर्घावधि के लिए निवेश करने वाले निवेशकों के लिए ये कंपनियां श्रेष्ठ मानी जाती हैं। निवेशकों को इस साइट से ऐसी अनेक जानकारियां मिल सकती हैं जो उनके निवेश निर्णय में सहायक होती हैं।

DP (Depository Participant)डीपी (डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट)

  • Depository Participant Means – शेयरधारक, कंपनी और डिपॉजिटरी की कड़ी अर्थात डीपी।

बैंक, वित्तीय संस्थाएं और शेयर दलाल आदि डीपी बन सकते हैं। जिस प्रकार बैंक खातेधारकों की रकम संभाल कर रखते हैं उसी प्रकार डिपॉजिटरी निवेशकों की प्रतिभूतियों को इलेक्ट्रानिक स्वरूप में संभाल कर रखते हैं।

हमारे देश में NSDL (नेशनल सिक्युरिटीज डिपॉजिटरी लि.) और CDSL (सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज इंडिया लि.) नाम की दो डिपॉजिटरी हैं।

शेयर बाजार में सौदे करने के लिए निवेशक को अपना डिमैट खाता(Demat Account) खुलवाना आवश्यक है। यह खाता डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट के पास खुलवाया जाता है।

Diversification – विविधीकरण

  • Diversification Meaning – सभी अंडे एक टोकरी में नहीं रखे जाते, आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी। इसी प्रकार सारा निवेश एक शेयर में नहीं करना चाहिए बल्कि अलग-अलग शेयरों में करना चाहिए और इतना ही नहीं ये शेयर भी अलग-अलग उद्योगों से जुड़ी कंपनियों के होने चाहिए। इस प्रकार विविध उद्योगों की कंपनियों के शेयरों में निवेश करना विविधीकरण(Diversification) कहलाता है।

ऐसा करने से निवेशकों की जोखिम घटती है, कारण कि यदि सारे अंडे एक ही टोकरी में हों और वह टोकरी गिर जाय तो सारे अंडे नष्ट हो जायेंगे। इसी प्रकार सारा निवेश किसी एक ही कंपनी के शेयरों में हो और दुर्भाग्यवश यदि उस कंपनी के साथ कुछ अनहोनी हो जाये तो निवेशकों का सारा निवेश नष्ट हो सकता है।

ऐसा करने के बजाय विविध शेयरों में निवेश होने से डाइवर्सिफिकेनशन का लाभ मिलता है। जिसमें यदि किसी एक या दो कंपनियों के शेयर गिर भी जायें तो अन्य शेयरों में किया गया निवेश उसकी जोखिम को कम कर देता है।

अलग-अलग उद्योगों के शेयर रखने के पीछे उद्देश्य यह है कि प्रायः किसी एक समय में सभी उद्योगों की कंपनी में मंदी का दौर नहीं रहता। एक उद्योग में मंदी होने पर दूसरे उद्योग की तेजी का लाभ मिल जाता है। हाँ, यह दूसरी बात है कि पूरे वित्त बाज़ार में ही भारी गिरावट का दौर न आ जाय।

यहाँ यह बात भी समझानी जरूरी है कि निवेश का डाइवर्सिफिकेशन मात्र शेयरों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। निवेशकों को मात्र शेयरों में निवेश करने से भी जोखिम होती है। भले ही उसने अनेक प्रकार के शेयरों में निवेश किया हो।

पूरा शेयर बाज़ार ही मंदी की चपेट में आ जाय तो क्या हो? निवेशकों को अपने असेट का भी डाइवर्सिफिकेशन रखना चाहिए। जिसे दूसरे शब्दों में एसेट एलोकेशन(Asset Allocation) भी कहा जाता है।

सरल शब्दों में कहा जाय तो निवेशकों को शेयरों के बाद सोना(Gold), चांदी(Silver), प्रापर्टी(Property), बैंक(Bank) या कार्पोरेट डिपॉजिट(Corporate Diposit), बांड्स(Bonds), सरकारी बचत योजनाओं इत्यादि में भी निवेश करना चाहिए

ऐसा करने से उसकी संपूर्ण जोखिम का विभाजन हो जाता है और वह अपने पूरे निवेश को खोने से बच सकता है।

Disgorgement – डिसगोर्जमेंट

  • Disgorgement Meaning – कोई भी हस्ती शेयर बाज़ार या पूंजी बाज़ार में गैर व्यवहारिक तरीके से घोटाले करके दूसरों की रकम डकार ले तब SEBI ऐसे मामलों की जांच करके इन हस्तियों के पास से गैर व्यवहारिक तरीके से कमाई गयी रकम वसूल करने का अधिकार रखती है। इस उद्देश्य से सेबी डिसगोर्जमेंट ऑर्डर जारी करती है। इस प्रकार की वसूली को डिसगोर्जमेंट(Disgorgement) कहा जाता है।

ताजा उदाहरण के रूप में इस शब्द को समझों तो वर्ष 2003-2005 के दौरान अनेक आईपीओ(IPO) में बेनामी डिमैट एकाउंट खुलवाकर मल्टिपल आवेदन करके अनेक लोगों ने अनुचित लाभ कमाया।

चूंकि उस समय बाज़ार तेजी पर था और IPO में शेयर पाने वाले लोगों को सेकेंडरी बाज़ार में लिस्टिंग के बाद अच्छा लाभ मिलता था। बेनामी मल्टिपल आवेदनों के कारण छोटे आवेदक IPO में शेयर पाने से वंचित रह गये थे।

SEBI ने लंबी जांच के बाद ऐसे अनेक लोगों के पास से उनके द्वारा गैर व्यवहारिक तरीके से कमाई गयी रकम डिसगोर्ज (वसूल) की और अप्रैल के शुरूआत में इस वसूल की गयी रकम को मुआवजे के रूप में उन लोगों में बांटा जो IPO में उक्त शेयर प्राप्त करने से वंचित रह गये थे।

भारतीय पूंजी बाज़ार के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ। भारत के वित्त मंत्री के हाथों निवेशकों को मुआवजे के चेक दिये गये।

इस प्रकार डिसगोर्जमेंट शब्द जरूर भारी है, लेकिन निवेशकों के लिए लाभदायी एवं राहत भरा है।इस उदाहरण से निवेशकों में सिस्टम तथा बाज़ार के प्रति विश्वास बढ़ना स्वाभाविक है।

SEBIअपने इस अधिकार से उन लोगों पर अंकुश बनाये रख सकती है, जो बाज़ार में गैर कानूनी और गैर व्यवहारिक तरीके से लाभ कमाना चाहते हैं।

Disclosure – डिस्क्लोजर

  • Disclosure Meaning – साधारण अर्थों में इसका अर्थ है खुलासा करना अर्थात डिस्क्लोज करना।

इस शब्द का पूंजी बाज़ार में काफी महत्त्व है। इसके आधार पर ही निवेश का निर्णय लिया जाता है। निवेशकों को कंपनी तथा उसके मध्यस्थतों के बारे में आवश्यक जानकारियाँ समय-समय पर मिलती रहे इसके लिए SEBI समय-समय पर डिस्क्लोजर के नियम बनाती एवं संशोधित करती रहती है। निवेश करने का निर्णय लेने में ये जानकारियाँ काफी महत्त्व रखती हैं।

Issuer – जारीकर्ता

  • Issuer Meaning – प्रतिभूतियाँ जारी करने वाली कंपनी या संस्थान को इस्यूअर कहा जाता है। साधारण शब्दों में शेयर या प्रतिभूतियाँ जारी करने वाली कंपनियों या संस्थाओं को इस्यूअर कहा जाता है।

Fundamentals – बुनियादी बातों

  • Fundamentals Meaning – शेयर बाज़ार या फिर कंपनी से सम्बंधित रिपोर्टों में अनेक बार फंडामेंटल शब्द पढ़ने या सुनने को मिलता है।

उदाहरण के तौर पर कंपनी के या बाज़ार के फंडामेंटल मजबूत हैं या कमजोर हैं इत्यादि-इत्यादि। फंडामेंटल अर्थात मूलभूत तत्व या परिणाम।

कंपनी बिक्री, नफा, आय, मार्जिन, डिमांड इत्यादि के सम्बंध में अच्छा प्रदर्शन करती हो तो फंडामेंटल की दृष्टि से कंपनी मजबूत गिनी जाती है।

इसी प्रकार अनेक कंपनियों के परिणाम अच्छे आने पर या अन्य उत्साहवर्धक नीतियों की घोषणा एवं अच्छी प्रगति होने पर बाज़ार में सकारात्मक रूझान दिखायी देता है तो यह आर्थिक जगत के मजबूत फंडामेंटल का आधार बनता है।

निवेशकों को पूंजी बाज़ार में निवेश करते समय कंपनियों एवं बाज़ार के फंडामेंटल पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

अनेक बार कंपनियों का फंडामेंटल तो मजबूत रहता है, परंतु बाज़ार का फंडामेंटल कमजोर रहने से शेयरों के भाव कम रह सकते हैं। निवेशकों को ऐसे समय में कंपनी के फंडामेंटल को अधिक महत्त्व देना चाहिए।

Guidance – गाइडेंस

  • Guidance Meaning – कंपनी जब आगामी समय में होने वाले अपने संभावित टर्नओवर या बिजनेस या कार्य के संकेत देती है तो उसे गाइडन्स(Guidance) कहा जाता है।

प्रायः IT (इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजीज) कंपनियाँ इस शब्द का काफी उपयोग करती हैं। इंफोसिस(Infosys) ने आगामी तिमाही के लिए अपना गाइडन्स जाहिर किया था, जिससे उसके शेयरों का भाव काफी चढ़ा, ऐसे समाचार आपने पढ़े होंगे। कंपनी के भावी संकेतों के आधार पर उद्योग विशेष के संकेत का अनुमान भी लगाया जा सकता है।

  • गाइड लाइन(Guideline) अर्थात मार्ग रेखा – SEBI शेयर बाज़ार अथवा बाज़ार के मध्यस्थतों के लिए जब-जब भी नीति-नियम जाहिर करती है तो उसे मार्ग रेखा कहा जाता है, इनका पालन करना आवश्यक होता है। दूसरे शब्दों में इसे शर्त एवं नियम भी कहा जा सकता है।

KYC – Know Your Client (अपने ग्राहक को जानें)

  • KYC Meaning – नो योर क्लाइंट अर्थात आप अपने ग्राहक को जानो-पहचानो। दूसरे शब्दों में कहें तो ग्राहक वास्तव में अस्तित्व में है या नहीं, इसकी जांच करना है।

बैंक एकाउंट, शेयर ब्रोकर के पास ट्रेडिंग एकाउंट या फिर डिमैट एकाउंट खुलवाते समय KYC का उपयोग होता है। बेनामी तथा गैरकानूनी प्रवृत्ति का धन बाज़ार में प्रवेश न कर पाये इसके लिए यह नियम लागू किया गया है।

काला धन, अपराध व अंडरवल्र्ड का धन, हवाले का धन आदि बैंकिंग व शेयर बाज़ार के माध्यम से प्रवेश कर रहा है ऐसी शंका या भय के आधार पर सरकार ने इस पर अंकुश लगाने के लिए KYC का पालन करना आवश्यक बनाया है।

इससे पहले IPO घोटाले के समय बोगस डिमैट और बैंक एकाउंट खुलवाने के प्रकरण प्रकाश में आये हैं, जिनमें कि वास्तव में कोई खाताधारक होता ही नहीं था और अनेक बेनामी और बोगस खाते खुल गये थे।

इसके बाद SEBI ने पूंजीबाजार(Capital Market) में केवाईसी आवश्यक करने का निर्णय लिया जो म्युच्युअल फंड के लिए भी लागू हो गया है।

listing – लिस्टिंग

  • Listing Meaning – सार्वजनिक निर्गम में आवेदकों को शेयर आबंटित करने के बाद उन शेयरों को शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग सूची पर सूचीबद्ध करवाया जाता है। इसे शेयरों को लिस्टिंग(Listing) कहा जाता है।

liquidity- प्रवाहिता

  • Liquidity Meaning – शेयर बाज़ार में रूपये की आपूर्ति अधिक हो और बढ़ते हुए भाव में भी निरंतर लिवाली(buying) बढ़ती रहे तो बाज़ार में प्रवाहिता(Liquidity) अधिक है ऐसा माना जाता है। इसका एक अर्थ यह भी है कि ले-बेच दोनों निरंतर होती रहे और उनमें वाल्यूम भी काफी हो तो लिक्विडिटी अच्छी कहलाती है।

बाज़ार में तेजी के लिए अच्छी लिक्विडिटी होना महत्त्वपूर्ण है। मंदी में लिक्विडिटी कम हो जाती है अथवा कम लिक्विडिटी होेने पर बाज़ार में मंदी आ जाती है।

अनेक बार बाज़ार में अधिक लिक्विडिटी के कारण भाव काफी बढ़ने लगते हैं जिससे बाज़ार में जोखिम बढ़ जाती है।

भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर बाज़ार में लिक्विडिटी को अंकुश में रखने के लिए कदम उठाती रहती है।

Rollover – लुढ़कना (एक ही दिन में भारी गिरावट)

  • Rollover Meaning – शेयर बाज़ार का Index Sensex या फिर Nifty यदि एक ही दिन में काफी गिर जाये तो इसे लुढ़कना अर्थात भारी गिरावट कहा जाता है।

सामान्यतः एक ही दिन में 400-500 अंकों की गिरावट बाज़ार के लुढ़कने या फिर इतने ही अंकों की वृद्धि बाज़ार के उछलने का प्रतीक माना जाता है।

Market Breadth – मार्केट ब्रेड्थ (बाजार की चौड़ाई)

  • Market Breadth Meaning – बाजार की चाल एवं प्रवृत्ति को दर्शाने वाली बातों को मार्केट ब्रेड्थ(Market Breadth) कहा जाता है।

शेयर बाज़ार में जब यह जानना हो कि बाज़ार की चाल सकारात्मक है या नकारात्मक तो इसका अनुमान निकालने के लिए मार्केट ब्रेड्थ को देखना चाहिए।

एक्सचेंज पर सूचीबद्ध कंपनियों में से जितनी भी कंपनियों के दिन भर के दौरान सौदे होते हैं उनमें से बढ़ने वाली और घटने वाली दोनों स्क्रिपें होती हैं। यदि बढ़ने वाली स्क्रिपों की संख्या अधिक हो तो मार्केट ब्रेड्थ पॉजिटिव और यदि घटने वाली स्क्रिपों की संख्या अधिक हो तो मार्केट ब्रेड्थ निगेटिव कही जाती है।

  • Example – BSE पर सूचीबद्ध कंपनियों में यदि किसी दिन 2500 स्क्रिपों में सौदे हुए हों और उसमें से 1500 स्क्रिपों के भाव बढ़े हों और 1000 स्क्रिपों के भाव घटे हों मार्केट ब्रेड्थ पॉजिटिव अर्थात सकारात्मक कही जाती है। इसके विपरीत होने पर मार्केट ब्रेड्थ निगेटिव अर्थात नकारात्मक कहलाती है।

बाज़ार का रूझान जानने के लिए निवेशकों को घटने वाली और बढ़ने वाली स्क्रिपों पर ध्यान देना चाहिए। BSE और NSE दोनों की वेबसाइट पर मार्केट ब्रेड्थ रोज-रोज ऑन लाइन देखने को मिलती है। सेंसेक्स की 30 स्क्रिपों में से 25 स्क्रिपें बढ़ी हों और 5 घटी हों तो सेंसेक्स की मार्केट ब्रेड्थ पॉजिटिव कही जाती है।

Pledge Share – प्लेज शेयर (गिरवी रखे गये शेयर)

  • Pledge Share Meaning – कोई भी निवेशक या खुद कंपनियों के प्रमोटर शेयरों को बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों के पास गिरवी रखकर ऋण ले सकते हैं। इस प्रकार ऋण के लिए बतौर गारंटी गिरवी रखे गये शेयरों को प्लेज शेयर(Pledge Share) कहा जाता है।

कंपनियाँ इस मार्ग से शेयर गिरवी रखकर ऋण सुविधाएँ लेती हैं और उसका उपयोग कंपनी के विकास कार्यों पर करती हैं। ऋण लेने के लिए यह एक आसान एवं अच्छा मार्ग है।

परंतु सत्यम कंप्यूटर(Satyam Scam) घोटाले के बाद हुई जांच में SEBI का ध्यान इस तरफ गया कि कंपनी के प्रमोटर भारी संख्या में शेयर गिरवी रखकर धन इकवा करके उसका अन्यत्र उपयोग कर लेते हैं, जिससे कंपनी को कोई फायदा नहीं होता।

इस विषय में पारदर्शिता के अभाव में निवेशकों को इस सच्चाई का पता नहीं लग पाता है कि प्रमोटरों की कंपनी में कितनी शेयरधारिता है क्योंकि प्रमोटरों की शेयरधारिता ही इस बात का संकेत है कि प्रमोटरों का कंपनी के साथ कितना हित जुड़ा हुआ है।

सत्यम घोटाले के उजागर होने के बाद ही SEBI ने समय-समय पर प्रमोटरों द्वारा गिरवी रखे गये उनके हिस्से के शेयरों की जानकारी घोषित करने का दिशा-निर्देश जारी किया। निवेशकों को प्रमोटरों की शेयरधारिता पर ध्यान रखना चाहिए।

Profit Booking – प्रॉफिट बुकिंग

  • Profit Booking Meaning – जब आप कोई शेयर Rs.45 के भाव पर लें और एक-आधे वर्ष बाद उसका भाव Rs.85 हो जाये और आप यह शेयर बेचकर नफा कर लें तो इसे प्रॉफिट बुकिंग(Profit Booking) कहा जाता है।

सामान्यतः निवेशक लालच में इतना आकर्षक लाभ मिलने पर भी और अधिक बढ़ने के लालच में उन शेयरों को बेचकर प्रॉफिट बुक नहीं करते, जिससे अनेक बार फिर से भाव घट जाने पर या तो उनका नफा जाता रहता है या वे नुकसान में भी जा सकते हैं।

जब तक आप Rs.45 का शेयर Rs.85 में बेचते नहीं हैं तब तक आपका वह नफा सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहता है। वास्तव में उसे बेचकर उसकी रकम प्राप्त करने पर ही आप प्रॉफिट हासिल कर सकते हैं।

Penny Stocks – पेनी स्टॉक्स

  • Penny Stocks Meaning – जिन शेयरों का भाव पैसों में अर्थात 10 पैसे से लेकर 90 पैसे तक या फिर Rs.1 -Rs.2 में बोला जाता हो उन्हें पेनी स्टॉक्स(Penny Stocks) कहा जाता है।

ऐसी कंपनियाँ बिल्कुल घटिया दर्जे की मानी जाती हैं तथा इनके शेयरों का कोई खरीदार नहीं रहता। प्रायः ऐसी कंपनियाँ जेड ग्रुप में रहती हैं और इन कंपनियों में अधिकांशत: सटोरियो या ऑपरेटर हिस्सा लेते हैं।

अपवाद स्वरूप अनेक बार ऐसी कंपनियों में भी कोई कंपनी ऐसी होती है जो टर्नअराउंड हो सकती है।

PBT – Profit Before Tax

  • PBT Meaning – प्रॉफिट बिफोर टेक्स-अर्थात सरकार को चुकाये जाने वाले करों के भुगतान के पूर्व का लाभ। PBT वह मुनाफा है जिसमें सरकार को चुकाये जाने वाले करों (TAX) का समायोजन नहीं किया गया होता है।

Recovery – रिकवरी

  • Recovery Meaning – यह करेक्शन से बिल्कुल विपरीत स्थिति दर्शाती है अर्थात निरंतर घटते हुए बाज़ार में जब गिरावट रूक जाये और बाज़ार बढ़ने लगे तो इसे रिकवरी(Recovery) कहा जाता है।

बाज़ार एक साथ घटता ही रहे तो इसे मंदी गिना जाता है परंतु मंदी के कुछ दिनों के बाद बाज़ार में सुधार हो तो उसे रिकवरी कहते हैं।

जिस प्रकार किसी बीमार आदमी के स्वास्थ्य में दवा लेने के बाद कुछ सुधार हो तो उसे रिकवरी कहते हैं उसी प्रकार गिरते हुए बाज़ार में सुधार होने पर रिकवरी कहा जाता है।

Relisted – रिलिस्टिंग

  • Relisted Meaning – जब कोई कंपनी एक या अनेक कारणों से नियमों का उल्लंघन करने पर डिलिस्टि कर दी जाती है तो उसके बाद वह कंपनी फिर से उन नियमों का पालन करके एक्सचेंज में अपने शेयर फिर से लिस्ट करवा लेती है। इस प्रकार दुबारा सूचीबद्ध हुई कंपनियों के लिए रिलिस्टिंग शब्द का प्रयोग होता है।

निवेशकों के लिए यह खुशी की बात होती है क्योंकि जिस कंपनी के शेयर मात्र कागज के टुकड़े रह गये थे उनमें फिर से प्रवाहिता आ जाती है, उन्हें खरीदा-बेचा जा सकता है।

Roll Back – रोल बैक

  • Rollback Meaning – इसका अर्थ यह है कि उठाया गया कदम पीछे नहीं लेना अर्थात जो निर्णय ले लिया गया वह ले लिया गया, उसे वापस नहीं लिया जायेगा।
  • Example – पेट्रोल की भाव वृद्धि घोषित करने के बाद वित्त मंत्री ने कहा कि उसका रोल बैक नहीं होगा तो इसका अर्थ यह हुआ कि भाव वृद्धि की घोषणा वापस नहीं ली जायेगी।

Regulation – रेग्युलेशन

  • Regulate Meaning – इस सरल शब्द का अर्थ इसिलये समझाना जरूरी है कि अधिकांश लोग रेग्युलेशन्स को नियंत्रण (कंट्रोल) मानते हैं, जबकि वास्तव में रेग्युलेशन नियमन है।

ऐसे तो इन दोनों की भूमिका एक जैसी लगती है परंतु वास्तव में ये कहीं अलग भी हैं। कंट्रोल में स्वामित्व का भाव रहता है, जबकि नियमन में नियम का पालन करवाने का इरादा होता है।

SEBI नाम की पूंजी बाज़ार की नियामक संस्था शेयर बाजार, शेयर ब्रोकर, म्युच्युअल फंड(Mutual Fund) आदि का नियमन करती है। सम्बंधित हस्तियों से नियमों का पालन करवाने की जवाबदारी का निर्वाहन करवाना नियमन है।

Restructuring – रिस्ट्रक्चरिंग

  • Restructuring Meaning – सामान्य अर्थों में इसका मतलब है पुनर्गठन। कार्पोरेट भाषा में कहें तो जब कोई कंपनी खास उद्देश्यों के साथ अपने घाटे में कमी लाने या लाभदायिकता बढ़ाने के प्रयास स्वरूप जो कुछ फेरबदल करती है उसे स्ट्रक्चरिंग(Restructuring) कहा जाता है।

निवेशकों को कंपनी द्वारा उठाये गये इस प्रकार के कदमों का ध्यान से अध्ययन करना चाहिए। इसका मुख्य उद्देश्य कंपनी की स्थिति सुधारना होता है।

Revival and Rehabilitation – पुनरुद्धार और पुनर्वास

  • Revival Meaning, Rehabilitation Meaning – जो कंपनी कंगाल होकर बीमार पड़ गयी हो तो उसके पुनर्रूत्थान की संभावना होने पर इसका प्रयास शुरू कर दिया जाता है। इसके लिए BIFR अपना मत व्यक्त करती है तथा कंपनी के प्रबंधन को ऐसा करने के लिए उचित समय देती है।

ऐसी कंपनियों के पुनर्रूत्थान की प्रक्रिया पर निवेशकों को ध्यान रखना चाहिए और उसके आधार पर निवेश करने का निर्णय लेना चाहिए

हालांकि ऐसी बीमार और पुनर्रूत्थान की संभावनाओं वाली कंपनियों के भाव काफी गिर जाते हैं और उनमें सौदे भी नाम मात्र के होते हैं, परंतु यदि कोई मजबूत ग्रुप ऐसी कंपनी को संभालने के लिए तैयार हो जाये तो कंपनी के शेयरों का भाव रिकवर हो सकता है।

ऐसी कंपनियों में जहाँ निवेश जोखिम भरा होता है वहीं इनमें लाभ की संभावनाएँ भी रहती है।

Rating – रेटिंग

  • Rating Meaning – कंपनी के वित्तीय परिणाम, कार्य परिणाम, ट्रैक रिकॉर्ड आदि के आधार पर कंपनी की प्रतिभूतियों या कंपनियों को रेटिंग प्रदान की जाती है, जो कंपनी की साख एवं पात्रता का स्तर दर्शाती है। कंपनी या संस्थाओं के अतिरिक्त देश को भी रेटिंग उपलब्ध करायी जाती है।
  • Example – स्टैंडर्ड एंड पुअर (S&P Global Ratings), मूडीज जैसी संस्थाएं देश की समग्र आर्थिक स्थिति के आधार पर संबंधित राष्ट्र को भी रेटिंग प्रदान करती हैं। समय-समय पर मौजूदा स्थितियों के अनुवर्ती रेटिंग को अपग्रेड या डाउनग्रेड किया जाता है।

किसी देश की रेटिंग ऊंची और अच्छी होती है तो विश्व के अन्य देशों के निवेशक उक्त देश के उद्योग धंधों में निवेश करने के लिए प्रेरित होते हैं।

Circuit Breakersसर्किट ब्रेकर

  • Circuit Breakers Meaning – सर्किट फिल्टर स्क्रिप पर लागू होता है जबकि बाजार के इंडेक्स पर सर्किट ब्रेकर लागू होता है। इंडेक्स दिन के दौरान कितने अंक या प्रतिशत बढ़ या घट सकता है इसकी मर्यादा को नियंत्रित रखने के लिए सर्किट ब्रेकर लागू किया जाता है।

आपने कई बार सुना होगा कि Sensex या Nifty निश्चित प्रतिशत टूटने (घटने) के कारण बाजार कुछ समय के लिए बंद कर देना पड़ा।

सर्किट ब्रेकर का उपयोग बाजार को तेजडि़यों और मंदेडि़यों की गिरप्त से बचाने के लिए किया जाता है ताकि एक ही दिन में भारी मात्रा में उतार-चढ़ाव न हो सके।

समय-समय पर सर्किट ब्रेकर की सीमा में फेरबदल किया जाता है।

Circuit Filterसर्किट फिल्टर

  • Circuit Filter Meaning – किसी भी स्क्रिप का भाव एक ही दिन में अनावश्यक रूप से घटे या बढ़े नहीं अथवा कोई ऑपरेटर खिलाड़ी ऐसा न कर सके इसके लिए स्टॉक एक्सचेंज प्रत्येक स्क्रिप के उतार-चढाव (चंचलता) को अंकुश में रखने के लिए सर्किट फिल्टर का तरीका अपनाती है।

शेयरों के भाव के साथ कोई निरंकुश होकर छेड़खानी न कर सके इस उद्देश्य से शेयर बाजार विविध सर्किट फिल्टर निर्धारित करता है, जो कि 20 प्रतिशत की रेंज में होती हैं।

जो स्क्रिप जितनी ज्यादा चंचल होती है उसे अंकुश में रखने के लिए कम प्रतिशत से सर्किट फिल्टर लागू किया जाता है, जबकि कम चंचलता वाली स्क्रिपों पर सर्किट फिल्टर का प्रतिशत अधिक होता है।

एक्सचेंज सर्किट फिल्टर की सीमा में समय-समय पर परिवर्तन करता रहता है।

  • Example – ABC कंपनी पर यदि 5 प्रतिशत की दर से सर्किट फिल्टर लागू है तो किसी एक कार्य दिवस में उस कंपनी के शेयरों का भाव अधिकतम या तो 5 प्रतिशत बढ़ सकता है या 5 प्रतिशत घट सकता है इससे अधिक की घट-बढ़ होने पर उस कंपनी के उस दिन सौदे नहीं हो सकते। यह सर्किट फिल्टर एक दिन के लिए लागू होता है। अगले कार्य दिवस उसे फिर से नये सौदे करने की अनुमति मिल जाती है, परंतु उस दिन भी उस पर वही सर्किट फिल्टर की सीमा लागू रहती है।

इस प्रकार किसी शेयर में ऊपरी सर्किट तेजी का तथा निचला सर्किट मंदी का संकेत देता है। निवेशक स्क्रिपों पर लगी सर्किट फिल्टर को ध्यान में रखकर उस स्क्रिप के संबंध में अनुमान लगा सकते हैं।

Circular Tradingसर्कुलर ट्रेडिंग

  • Circular Trading Meaning – शेयर बाजार में सटोरियों या ऑपरेटरों का एक ऐसा वर्ग भी रहता है जो अपनी पसंदीदा स्क्रिप की आपस में ही खरीद-बिक्री करके उसके भाव को अपनी इच्छित दिशा में ले जाने का प्रयास करता है। इस समूह के लोग पहले से ही आपस में सांठ-गांठ कर लेते हैं और आपस में ही शेयरों को खरीद-बेचकर उस शेयर के प्रति बाजार में विशेष रूझान बनाने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार की ट्रेडिंग को सर्कुलर ट्रेडिंग(Circular Trading) कहा जाता है।

सामान्य निवेशकों के लिए यह खेल समझाना कठिन जरूर है, परंतु निरंतर निरीक्षण एवं अनुभव के आधार पर इस तरह के खेल को समझाा जा सकता है और उनके इस जाल से बचा जा सकता है।

एक्सचेंज का सर्वेलंस विभाग भी ऐसे सौदों पर विशेष ध्यान रखता है और ऐसे मामले सामने आने पर उन पर आवश्यक कानूनी कार्यवाही भी करता है।

आम निवेशकों को तेजी के समय किसी विशेष स्क्रिप की खरीदारी करने से पहले इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कहीं उसमें सर्कुलर ट्रेडिंग करके उन्हें लुभाने का प्रयास तो नहीं किया गया है।

Stop Loss – स्टॉप लॉस (SL)

  • Stop Loss Meaning – प्रॉफिट बुकिंग की तरह ही बाजार में लॉस की अर्थात घाटे की बुकिंग करनी होती है, जिसे स्टॉप लॉस कहा जाता है तथा उचित समय पर ऐसा न कर पाने पर घाटा बढ़ता जाता है।
  • Example – कोई शेयर Rs.45 के भाव पर लिया और उसका भाव घटकर Rs.38 रह गया तथा आगे भी उसमें घटने का ही रूझान दिखायी दे तो निवेशकों को Rs.38 के स्तर पर शेयर बेच कर अपने घाटे को मर्यादित कर लेना चाहिए। ऐसा न करने पर घाटे की मात्रा काफी ज्यादा हो सकती है। रोज-रोज की खरीद-बिक्री के दौरान प्रॉफिट बुकिंग और स्टॉप लॉस की नीति का उपयोग प्रचुर मात्रा में होता है।

स्टॉप लॉस को दूसरे शब्दों में कहें तो इसका अर्थ है कि घाटे की मर्यादा को नियंत्रित कर लेना। निवेशक इस प्रकार की खास सूचना के साथ अपना ऑर्डर भी रख सकते हैं।

Stimulus Packageप्रोत्साहन पेकेज

  • Stimulus Package Meaning – वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद यह शब्द पूरे विश्व में प्रचलित हो गया। मंदी से उद्योग को उबारने के लिए या उस उद्योग का अस्तित्व टिकाये रखने के लिए जब सरकार राहत पैकेज घोषित करती है तो उसे स्टीम्युलस पैकेज(Stimulus Package) कहा जाता है।

राहत पैकेज में करों से छूट या मुक्ति, अनुदान, ब्याज माफी, ऋण वापस करने के नियमों में छूट जैसी अनेक सुविधाओं का समावेश होता है।

सरकार अपने बजट से ये सुविधाएं उस उद्योग को बचाने के लिए उपलब्ध कराती है। ये सुविधाएं निश्चित समयावधि के लिए होती हैं, स्थायी नहीं।

इसलिये जब भी इस तरह का राहत पैकेज वापस लिया जाता है तब संबंधित उद्योग में थोड़ी सी घबराहट जरूर नजर आती है और उसका असर उन कंपनियों के शेयरों पर भी पड़ता है।

हालांकि सरकार राहत पैकेज वापस लेते समय इस बात की सुनिश्चितता करती है कि क्या वह उद्योग अपने बल पर खड़ा होने के लिए लायक बन गया है? राहत पैकेज से संबंधित सरकारी निर्णय उक्त उद्योग की कंपनियों के शेयरधारकों के लिए काफी संवेदनशील होते हैं।

SEBI – सेबी

  • SEBI – यह पूंजी बाजार – शेयर बाजार की नियामक संस्था है, जिसका पूरा नाम सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया(SEBI – Securities and Exchange Board of India) है। सेबी का मूलभूत उद्देश्य है पूंजी बाजार का स्वस्थ विकास एवं निवेशकों का रक्षण।

SEBI का गठन संसद में पारित प्रस्तावों के अनुरूप किया गया है, जो एक स्वायत्त नियामक संस्था है। इसके नियम शेयर बाजारों, शेयर दलालों, मर्चेंट बैंकरों, म्युच्युअल फंडों, पोर्टफोलियो मैनेजरों सहित पूंजी बाजार से संबंधित अनेक मध्यस्थतों पर लागू होते हैं।

SAT(Securities Appellate Tribunal) – प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण

  • SAT – यह SEBI से सम्बद्ध एक न्यायालय के समान ज्युडिसरी बॉडी है।

सेबी के आदेश के सामने सेट में अपील की जा सकती है। सेट के आदेश सेबी को मानने पड़ते हैं या सेबी उसके सामने भी अपील कर सकती है और हाईकोर्ट में भी अर्जी कर सकती हैं।

जिस प्रकार इन्कम टैक्स के सामने अपील में जाने के लिए इन्कम टैक्स अपीलेट ट्रिब्युनल होती है उसी प्रकार SAT एक ट्रिब्युनल है।

Sweat Equity – स्वीट (स्वेट) इक्विटी

  • Sweat Equity Meaning – कंपनी जब अपने कर्मचारियों एवं निर्देशकों को रियायती शर्तों पर इक्विटी शेयर देती है तब ऐसे शेयरों को स्वीट शेयर(Sweat Equity) कहा जाता है।

IPL मैच के विवाद के दौरान यह शब्द थोड़ा चर्चा में आया था, परंतु शेयर बाजार और आर्थिक जगत में यह शब्द वर्षों से प्रचलित है।

सामान्यतः ये स्वीट (स्वेट) इक्विटी शेयर कर्मचारियों एवं निदेशकों को उनके द्वारा कंपनी के हित में किये गये महत्वपूर्ण योगदान के बदले दिये जाते हैं। कभी -कभी ये शेयर बिल्कुल निःशुल्क भी दिये जाते हैं।

Sick Company – सिक कंपनी(बीमार कंपनी)

  • Sick Company Meaning – बीमार कंपनी या मंद कंपनी को सिक कंपनी कहा जाता है। कंपनी अधिनियम में बीमार कंपनी की व्याख्या की गयी है जिसके अनुसार जिस कंपनी की नेटवर्थ समाप्त हो गयी हो अर्थात जिस कंपनी का संचित घाटा बढ़कर उसकी नेटवर्थ से अधिक हो गया हो तो उसे बीमार कंपनी माना जाता है और ऐसी कंपनी बीमार कंपनी कही जाती है।

बीमार हो चुकी कंपनी का इलाज हो सकता है, जिसके तहत प्रमोटर कंपनी में अन्य धन का निवेश करते हैं, दूसरे प्रमोटरों को सहभागी बनाते हैं जिससे वह कंपनी बीमारी से बाहर आ सकती है।

बीमार कंपनी को BIFR (बोर्ड फार इंडस्ट्रीयल एंड फाइनेंशियल रिकंस्ट्रक्शन्स) में सूचीबद्ध कराना होता है। यह बोर्ड कंपनी की स्थिति की जांच करके उसके इलाज की सलाह देता है। यदि उसे सुधरने का कोई रास्ता नजर नहीं आता तो ऐसी कंपनियों को वाइंड-अप (बंद) करने की सलाह दी जा सकती है।

निवेशकों को ऐसी कंपनियों पर दोहरी नजर रखनी चाहिए। यदि ऐसी कंपनियों के सुधरने की संभावना हो तो उस कंपनी के शेयर कम भाव पर खरीद लेने चाहिए और यदि कंपनी बंद होती नजर आये तो अपने शेयर बेच देने चाहिए।

Selling Presure – सेलिंग प्रेशर

  • Selling Pressure Meaning – शेयर बाजार में यह शब्द प्रचलित होने के साथ-साथ घबराहट फैलाने वाला है। इसका अर्थ है बिकवाली का दबाव। जब शेयर बाजार में निरंतर या बड़ी मात्रा में बिकवाली होने लगे तब ऐसी स्थिति को सेलिंग प्रेशर कहा जाता है।

इससे बाजार मंदी की ओर जाता है। सेलिंग प्रेशर पूरे बाजार का भी हो सकता है या FII या Mutual Fund जैसे समूह का भी हो सकता है।

जब किसी एक वर्ग द्वारा बिकवाली का दबाव हो तो ज्यादा चिंता की बात नहीं परंतु जब यह दबाव सभी वर्गों में हो तो ऐसी स्थिति चिंतादायक होती है।

Shareholding Pattern – शेयरहोल्डिंग पैटर्न

  • Share Holding Pattern Meaning – प्रत्येक कंपनी का शेयरहोल्डिंग पैटर्न होता है। इसका अर्थ यह है कि उक्त कंपनी की शेयरपूंजी में किस-किस वर्ग के कितने शेयर हैं, इसकी जानकारी शेयर पैटर्न कहलाती है तथा इसके आधार पर कंपनी का मूल्यांकन भी किया जा सकता है।

किसी भी कंपनी में अलग-अलग शेयरधारक होते हैं, जिसमें कंपनी के प्रमोटरों के अलावा दिए गए शेयर धारक भी होते है।

  • सार्वजनिक जनता
  • विदेशी संस्थागत निवेशक (FII)
  • Mutual Fund
  • घरेलू संस्थागत निवेशक (जिसमें बीमा कंपनियों, बैंकों आदि का समावेश होता है)
  • NRI (अनिवासी भारतीय)

सामान्यतः जिस कंपनी में प्रमोटरों की शेयरधारिता अधिक होती है उसे मजबूत कंपनी माना जाता है इसका कारण यह है कि कंपनी के प्रमोटरों का हिस्सा अधिक होने पर वे उसके विकास के लिए अधिक सक्रिय एवं गंभीर रहते हैं, ऐसा माना जाता है।

जिस कंपनी की शेयरधारिता में जनता का हिस्सा कम होता है बाजार में उनके शेयर कम रहते हैं, जिससे बाजार में उसकी मांग बढ़ने पर भाव ऊंचे रहने या बढ़ने की संभावना अधिक रहती है।

इसी प्रकार FII, वित्तीय संस्थाओं और Mutual Fund की शेयरधारिता अधिक होने वाली कंपनियों को भी अच्छा माना जाता है क्योंकि उन कंपनियों में फंडामेंटल मजबूती के आधार पर ही तो इन वित्त विशेषज्ञों ने इनमें निवेश किया होगा, ऐसा माना जा सकता है।

इस प्रकार कंपनी के शेयरहोल्डिंग पैटर्न(share holding) को देखकर उस कंपनी की सेहत का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। प्रत्येक कंपनी की स्वयं की वेबसाइट या शेयरबाजार की वेबसाइट पर प्रत्येक कंपनी का शेयरहोल्डिंग पैटर्न उपलब्ध है। निवेशक निवेश करने से पहले संबंधित कंपनी के शेयरहोल्डिंग पैटर्न को देख लें, ऐसी सलाह दी जाती है।

Short Covering – शॉर्ट कवरिंग

  • Short Covering Meaning – जब बाजार में अधिकांश कारोबारी खोटी बिकवाली करके बाद में शेयरों की खरीदी करने लगे अर्थात शॉर्ट सेल्स करने के बाद खरीदी करने लगे तो ऐसी स्थिति को शोर्ट कवरिंग कहा जाता है।

बाजार जब गिरावट की तरफ होता है तो उस समय मंदेडि़ये हाथ में शेयर न होने पर भी उनकी बिकवाली कर देते हैं, जिससे यदि बाजार उनकी धारणा के अनुसार और घटता है तो वे घटे हुए भाव पर शेयर खरीद कर उसकी डिलिवरी दे देते हैं अथवा सौदे को भाव अंतर के साथ बराबर कर देते हैं। इस प्रकार शार्ट कवरिंग होती है।

इस प्रकार शेयर बाजार से संबंधित इस शब्द का अखबारों में या दैनिक मार्केट रिपोर्ट में काफी उपयोग होता है।

शॉर्ट कवरिंग के कारण बाजार घटने से रूका या बाजार रिकवर हुआ ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं। इस प्रकार शॉर्ट कवरिंग गिरते हुए बाजार को थामने का काम करता है।

Discount – शेयर बाजार में डिस्काउंट

  • Discount Meaning – शेयर बाजार में डिस्काउंट का दूसरा अर्थ भी होता है। जब बाजार में किसी कंपनी के शेयर का भाव उसके मूल भाव से नीचे चल रहा है तो उसे डिस्काउंट कहा जाता है।

इसे विलो पार अर्थात सममूल्य से कम भी कहा जाता है। दूसरी तरफ किसी कंपनी के शेयरों का विद्यमान बाजार भाव यदि उसके समभावित भाव से कम चल रहा हो तो इसे भी शेयर डिस्काउंट पर मिल रहा है, ऐसा कहा जाता है।

यह हुई शेयर के भाव में डिस्काउंट की बात। दूसरी तरफ शेयर बाजार में अनेक ऐसी घटनाएं एवं समाचार होते हैं जहां इस शब्द का उपयोग किया जाता है।

किसी घटना के होने की संभावना मात्र से बाजार पर उसका असर पड़ जाये और वह घटना वास्तव में घटित होने पर उसका खास असर बाजार पर न पड़े तो कहा जाता है कि वह घटना डिस्काउंट हो गयी।

  • Example – रिजर्व बैंक की घोषणाएं होने की संभावना से ही बाजार पर उसका असर पड़ जाये और सचमुच घोषणा होने पर उसका कोई खास असर दिखायी न दे तो कहा जाता है कि रिजर्व बैंक की घोषणाएं डिस्काउंट हो गयी।

Top and Bottom – टॉप और बॉटम

  • Top and Bottom Meaning – शेयर बाजार में जब भी कोई शेयर या सूचकांक अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचता है तो कहा जाता है कि उक्त शेयर या उक्त इंडेक्स ने अपना टॉप बना लिया है। इसी प्रकार निचले स्तर पर होने पर बॉटम कहलाता है। यह टॉप या बॉटम समय अंतराल के आधार पर निर्धारित होता है।
  • Example – सेंसेक्स ने वर्ष 2009 में 17500 का टॉप और 7600 का बॉटम बनाया।

Turnaround – टर्नअराउंड

  • Turnaround Meaning – टर्नअराउंड जब कोई कंपनी घाटे से बाहर निकल कर मुनाफा करने लगे या भारी घाटा दर्शाने वाली कंपनी का घाटा नाम मात्र रह जाये तो ऐसी कंपनी को टर्नअराउंड कंपनी कहा जाता है।

निवेशकों को ऐसी कंपनियां तलाशते रहनी चाहिए क्योंकि ऐसी कंपनियों में आगामी समय में मुनाफे की गुंजाइश बढ़ जाती है जिससे उनके भाव बढ़ने की संभावना हो जाती है।

व्यापारिक पत्रिकाओं, रिसर्च एजेंसियों, स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाइट का निरंतर अवलोकन करके इस प्रकार की कंपनियों को चिन्हित किया जा सकता है।

कई बार किसी निश्चित उद्योग में मंदी का दौर समाप्त होने पर उस क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां टर्नअराउंड हो जाती हैं। इसी प्रकार कई बार पूरा बाजार भी टर्नअराउंड होता है, जिसमें बाजार निरंतर गिरावट वाले निगेटिव रूझान से निकलकर सकारात्मक की ओर प्रस्थान करता है।

Takeover – टेकओवर

  • Takeover Meaning – जब कोई एक कंपनी दूसरी कंपनी का अधिग्रहण करती है तो इसे टेकओवर कहा जाता है।

कार्पोरेट क्षेत्र में बड़ी कंपनियां अपने जैसा ही कारोबार करने वाली छोटी परंतु अच्छी कंपनियों का टेकओवर करके अपना कद बढ़ाती हैं। जैसे की,

  1. कुछ समय पूर्व स्टील क्षेत्र की टाटा स्टील द्वारा विदेशी कंपनी कोरस के अधिग्रहण की बात सुनी होगी।
  2. अभी हाल ही में फोर्टिस हेल्थकेयर ने विदेशी कंपनी पार्कवे का मेजोरिटी हिस्सा अधिग्रहित किया है।
  3. भारती एयरटेल अफ्रीका की जेन कंपनी का अधिग्रहण करके चर्चा में रही है।

कोई भी कंपनी जब दूसरी कंपनी का टेकओवर करती है तब उसका स्वामित्व या नियंत्रण अपने कब्जे में ले लेती है, जिसके कारण ये टेकओवर शेयरधारकों एवं निवेशकों के लिए संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

जब कोई मजबूत और समर्थ कंपनी किसी दूसरी कमजोर कंपनी का अधिग्रहण करती है तो कमजोर कंपनी के शेयरधारक खुश हो जाते हैं, जबकि अधिग्रहित करने वाली कंपनी के शेयरधारक सोचते हैं कि इससे उनकी कंपनी पर बोझा न बढ़े तो अच्छा।

टेकओवर परस्पर आपसी सहमति से भी होता है तथा बाजार की व्यूहरचना के साथ चालाकी से भी किया जाता है जिसमें अनेक बार जिस कंपनी का टेकओवर किया जाता है उस कंपनी के मैनेजमेंट को अंधेरे में भी रखा जाता है।

इस प्रकार के ‘Takeover’ के अनेक किस्से कार्पोरेट इतिहास में दर्ज हैं। ऐसे टेकओवर को ‘hostile takeover’ कहा जाता है।

इस विषय की जटिलता एवं शेयरधारकों की सुरक्षा एवं हितों के विभिन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए सेबी ने टेकओवर रेग्युलेशन्स बनाया है और समय-समय पर आवश्यकतानुसार उसमें सुधार भी किया जाता है।

निवेशकों को कार्पोरेट टेकओवर के किस्सों पर नजर रखनी चाहिए क्योंकि आगामी वर्षों में ऐसे किस्से बढ़ने की संभावना है।

भारी प्रतिस्पर्धा में न टिक पाने वाली छोटी एवं मध्यम कद की कंपनियों को विशालकाय कंपनियां टेकओवर कर लें तो ऐसे में उन छोटी कंपनियों की किस्मत बदल जाती है, जिसका प्रभाव दोनों कंपनियों के शेयर भावों पर पड़ता है।

Target – टार्गेट

  • Target Meaning – इसका सरल अर्थ है लक्ष्य। शेयर बाजार में टार्गेट शब्द का उपयोग शेयरों के भाव के संदर्भ में व्यापकता से उपयोग किया जाता है। विशेषकर एनालिस्ट अपनी रिपोर्ट में इस शब्द का उपयोग करते हैं।
  • Example – एक कंपनी के शेयरों का भाव आगामी तीन महीनों या छह महीनों में 500 रू. तक पहुंचने का टार्गेट है।

इस टार्गेट अर्थात लक्ष्य के लिए एनालिस्ट विभिन कारण भी बताते हैं। टार्गेट भाव शार्ट टर्म के लिए अधिक उपयोग किया जाता है और उसमें परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलाव भी किया जाता है।

यहां इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जब कोई एनालिस्ट किसी शेयर का टार्गेट भाव बताये तो उसके आधार पर आंख बंद करके निवेश नहीं करना चाहिए। तेजी के समय ऐसे टार्गेट भले ही पूरे हो जायें, लेकिन हमेशा ऐसा हो ही, यह जरूरी नहीं।

Trade Trigger – ट्रीगर

  • Trigger Meaning – यह शब्द जरा संजीदा है। इसका सादा अर्थ है बाजार का चालक बल या ड्राइवर। बाजार की भाषा में कहें तो मार्केट को ऊंचा ले जाने के लिए किसी ट्रीगर की जरूरत होती है।

शेयर बाजार एक या अनेक कारक तत्वों के आधार पर संचालित होता है, उसकी गति ऊपर या नीचे की ओर हो सकती है परंतु बाजार को वेग देने के लिए ट्रीगर प्वाइंट जरूरी है।

  • Example – सरकार जब कोई उदार एवं प्रोत्साहनात्मक नीति जाहिर करती है तब बाजार को ऊपर जाने के लिए ट्रीगर मिल जाता है अथवा रिलायंस जैसी विशाल कंपनी का परिणाम काफी उत्साहवर्धक जाहिर हो तो यह भी बाजार को ऊपर ले जाने के लिए ट्रीगर बन सकता है।

रिजर्व बैंक की ऋण नीति अत्यधिक प्रोत्साहन वाली थी जिससे बाजार को ऊपर जाने का ट्रीगर मिल गया। इस प्रकार शेयर बाजार की चाल को वेग देने वाले कारक तत्वों को ट्रीगर कहा जाता है।

यहाँ जिदंगी या उसके इस कॉलम को पढ़ना भी आपके लिए ट्रीगर हो सकता है क्योंकि इसको पढ़कर आप लाभान्वित होते हैं।

UCC (Unique Client Code)

  • UCC Meaning – शेयर दलालों के पास अपना पंजीकरण कराने वाले प्रत्येक ग्राहक को एक कोड नंबर दिया जाता है। ब्रोकर के पास शेयरों के सौदे लिखवाते समय ग्राहकों को यह कोड नंबर बताना होता है।

ULIP(Unit Linked Insurance Plan)

  • ULIP Meaning – अभी यह नाम विवादित हो गया था। युलिप का पूरा नाम है यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (Unit Linked Insurance Plan) । अर्थात एक ऐसी निवेश योजना जिसमें निवेश करने से व्यक्ति का जीवन बीमा भी हो जाता है। उसके द्वारा किये गये निवेश को सिक्युरिटीज मार्केट में निवेश किया जाता है जिससे उसे प्रतिभूति बाजार का एक्सपोजर भी मिलता है।

अभी हम इसके विवाद की बात करने के बजाय युलिप के बारे में बताना चाहेंगे। युलिप एक म्युच्युअल फंड के समान स्कीम है जो निवेश के साथ बीमा का भी लाभ ऑफर करती है। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि निवेशकों को बीमा प्रोडक्ट में बीमा के तरीके से ही निवेश करना चाहिए।

जो व्यक्ति सचमुच अपने परिवार के हित में अपने जीवन को बीमित करना चाहता है उसके निवेश में बीमे की मात्रा अधिक रहने वाली योजनाओं का समावेश होना चाहिए।

युलिप में बीमा का हिस्सा काफी कम होता है और सिक्युरिटीज में निवेश का हिस्सा काफी ऊंचा होता है।

युलिप हो या ऐसी ही कोई अन्य योजना निवेशकों को चाहिए कि वे इन योजनाओं का बारीकी से अध्ययन करके ही अपनी आवश्यकता के अनुरूप इसका चयन करें।

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